Vivekananda Forum Meet 09 January 2025
Forum Class Notes
द्वार बंद अध्ययन
बुद्ध
मन शुद्ध
दिव्य दर्शन आत्मा का साक्षात्कार
हस्त आमलकवत्. शिकागो वक्तृता. पुरुष से स्त्री अधिक शिक्षित
पुरुष रात दिन परिश्रम
ईर्ष्या निंदा व्यर्थ निंदा पर ध्यान न देकर अपना कार्य किये समुद्र की लहरों
दैव पर निर्भरता नागमहाशय सेवा प्रत्येक वस्तु में आत्म दर्शन
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गंगाजी भवन
बाल्यावस्था साहसी नि:सम्बल संसार में फिरना
रामायण कथा हनुमान कदली वन महवीर मूर्ति
छात्र जीवन आमोद प्रमोद रात को द्वार बंद अध्ययन
स्कूल में पढ़ते समय दिव्या दर्शन
बुद्ध ज्योतिर्मय मूर्ति सन्यासी
मन शुद्ध काम कांचन लालसा शांत दिव्या दर्शन
ध्यान रखना उचित नहीं
साधक आगे नहीं बढ़ पाते
चिंतामणि की ड्योढ़ी पर कितने ही मणि
आत्मा का साक्षात्कार ही उचित
अमरीका अद्भुत शक्तियों का स्फुरण
आँखों से सब भाव
हस्त आमलकवत्
शिकागो वक्तृता
शारीरिक मानसिक परिश्रम
थक विषय समाप्त
नया भाव नहीं उठेगा
तन्द्रा नया भाव नयी कथाएं
सोते सोते वक्तृता सुनी
सूक्षम स्थूल शरीर
पुरुष से स्त्री अधिक शिक्षित
विज्ञानं दर्शन में पंडिता
मान करती हैं
पुरुष रात दिन परिश्रम करते हैं , तनिक भी विश्राम का अवसर नहीं मिलता
स्त्रियां स्कूलों में पढ़ती हैं . पढ़कर विदुषी
ईसाई संकीर्ण कट्टर विरुद्ध
ईर्ष्या निंदा समाचार
प्रतिवाद नहीं
दृढ विश्वास कि कपट से महान कार्य
व्यर्थ निंदा पर ध्यान न देकर अपना कार्य किये जाता
अनुतप्त शरण क्षमा मांग
निमंत्रण मिथ्या निंदा सुनसान
दुनियादारी
यथार्थ साहसी और ज्ञानी दुनियदारी से घबराता नहीं
जगत चाहे जो कहे, क्या परवाह है ? मैं अपना कर्त्तव्य पालन करता चला जाऊँगा . यही वीरों की बात है
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेच्छम्
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः
लक्ष्मी कृपा देहांत न्यायपथ
तूफ़ान पार शांति
बड़ा कठिन परीक्षा
परीक्षा रूपी कसौटी जीवन के घिसने के पश्चात
बड़ा कहकर स्वीकार किया
भीरु कापुरुष समुद्र की लहरों को देखकर किनारे पर ही नाव रखते हैं
इष्ट लाभ अवश्य कर के रहूंगा
यथार्थ पुरुषकार
सैकड़ों देव भी जड़त्व दूर नहीं कर सकते
दैव पर निर्भरता दुर्बलता का चिन्ह ?
पांचवा पुरुषार्थ है
मृत्यु का चिन्ह , कापुरुषता का लक्षण चरम अवस्था
दोषों को थापने का कल्पना
गो हत्या पाप इंद्र – बगीचा तुमने गाय मारी इंद्र ने
‘यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि’
जल के कमलपत्रों के समान निर्लिप्त हैं!
अच्छे कार्य के समय ‘मैं’ और बुरे के समय ‘तुम’
जब तक पूर्ण प्रेम या ज्ञान नहीं होता, तब तक निर्भरता की अवस्था हो ही नहीं सकती
ठीक ठीक निर्भर भले बुरे की भेदबुद्धि
नागमहाशय अनुरागी भक्त
राजा जनक जितेन्द्रिय
कथा सुनने में भी नहीं आता
सत्संग सर्वदा अंतरंग भक्त
उस देश में अनेक लोग उनको पागल समझते है, परन्तु मैंने तो पहले से ही उनको एक महापुरुष समझा है। वे मुझसे बहुत प्रेम करते हैं और मुझ पर उनकी कृपा भी बहुत है।
स्वामीजी – तुमने ऐसे महापुरुष का सत्संग किया है फिर तुम्हे क्या चिन्ता है? अनेक अन्यों की तपस्या से ऐसे महापुरुषों का सत्संग मिलता है।
शिष्य
श्री नागमहाशय घर में किस प्रकार से रहते हैं।
कभी कोई काम काज करते नहीं पाया।
केवल अतिथि सेवा पाल बाबू आदि
कुछ रुपया दे देते हैं उसके अतिरिक्त उनके खाने पीने का और कोई सहारा नहीं है।
धनिकों धूम धाम रहती
अपने भोग के निमित्त नहीं
व्यप परसेवार्थ।
सेवा यही उनके जीवन का महाव्रत
प्रत्येक जीव् में, प्रत्येक वास्तु में आत्म दर्शन अभिन्न ज्ञान से जगत् की सेवा करने
अपने शरीर को शरीर नहीं समझते।
न्हें शरीर ज्ञान है या नहीं।
ज्ञानातीत अवस्था (Superconscious state) सर्वदा उसी में र
श्रीगुरुदेव उनसे कितना प्रेम करते थे। एक साथी पूर्व बंग
पूर्व बंग प्रकशित
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