शान्ति मन्त्र Shanti Mantras

ॐ श्री गुरुभ्यो नमः , हरि:ॐ

Video ( With Text and Chanting of Shanti Mantra)

Audio ( Chanting of Shanti Mantra)

Shanti Paath

OM. Together may He protect us: together may He possess us: together may we make unto us strength and virility! May what we have studied be full to us of light and power! May we never hate! OM. Peace! Peace! Peace!

Hari OM. Be peace to us Mitra. Be peace to us Varuna. Be peace to us Aryaman. Be peace to us Indra & Brihaspati. May farstriding Vishnu be peace to us. Adoration to the Eternal. Adoration to thee, O Vaiou. Thou, thou art the visible Eternal and as the visible Eternal I will declare thee. I will declare Righteousness! I will declare Truth! May that protect me! May that protect the Speaker! Yea, may it protect me! May it protect the Speaker. OM Peace! Peace! Peace!

OM. May we hear what is auspicious with our ears, O ye Gods; may we see what is auspicious with our eyes, O ye of the sacrifice; giving praise with steady limbs, with motionless bodies, may we enter into that life which is founded in the Gods. Ordain weal unto us Indra of high -heaped glories; ordain weal unto us Pushan, the all -knowing Sun; ordain weal unto us Tarkshya Arishtanemi; Brihaspati ordain weal unto us. OM. Peace! peace! peace!

“Lead me from the unreal to the real. From darkness lead me to light. From death lead me to immortality.” When the mantra (verse) says: “Lead me from the unreal to the real,” “the unreal” means death and the “real,” immortality; so it says, “From death lead me to immortality,” that is to say, “Make me immortal.” When it says: “From darkness lead me to light,” “darkness” means death and “light,” immortality; so it says: “From death lead me to immortality,” that is to say, “Make me immortal.” In the verse: “From death lead me to immortality,” there is nothing that is hidden. 

Om. Complete in itself is that yonder and complete in itself that which here and the complete ariseth from the complete: but when thou takest the complete from its fullness, that which remaineth is also complete. Om. Peace! Peace! Peace!

शान्तिपाठ

ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

om| saha nāvavatu | saha nau bhunaktu | saha vīryaṁ karavāvahai |tejasvi nāvadhītamastu| mā vidviṣāvahai |om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ ||

Anvaya

नो सह अवतु नौ सह भुनक्तु आवाम् सह वीर्यम् करवावहै नौ अधीतं तेजस्वि अस्तु मा विद्विषावहै। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

Anvaya Transliteration

no saha avatu nau saha bhunaktu ( āvām ) saha vīryam karavāvahai nau adhītaṁ tejasvi astu mā vidviṣāvahai|om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ| 

नौ – nau – us | सह – saha – together | अवतु – avatu – may He protect | नौ – nau – us | सह – saha – together | भुनक्तु – bhunaktu – may He possess | सह – saha – together | वीर्यम् – vīryam – strength and virility | करवावहै – karavāvahai – may we make unto us | नौ अधीतम् – nau adhītam – may our study | तेजस्वि अस्तु – tejasvi astu – be full to us of light and power | मा विद्विषावहै – mā vidviṣāvahai – may we never hate | ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः – om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ – OM! Peace, peace, peace. | ॐ – om – OM | 

ॐ। ‘वह’ हम दोनों की एक साथ रक्षा करे। ‘वह’ एक साथ हम दोनों को अपने अधीन कर ले। हम एक साथ शक्ति एवं वीर्य अर्जित करें। हमारा अध्ययन हम दोनों के लिए तेजस्वी हो, प्रकाश एवं शक्ति से परिपूरित हो। हम कदापि विद्वेष न करें। ॐ शान्तिः! शान्तिः! शान्तिः!

ॐ पूर्णब्रह्म परमात्मन् (आप) नौ हम दोनों (गुरु-शिष्य) की; सह-साथ-साथ; अवतु-रक्षा करें; नौ हम दोनोंका; सह-साथ-साथ; भुनक्तु-पालन करें; सह (हम दोनों) साथ-साथ ही; वीर्यम्-शक्ति; करवावहै-प्राप्त करें; नौ-हम दोनोंकी; अधीतम्-पढ़ी हुई विद्या; तेजस्वि तेजोमयी; अस्तु-हो; मा विद्विषावहै-हम दोनों परस्पर द्वेष न करें।

व्याख्या- हे परमात्मन् ! आप हम गुरु-शिष्य दोनोंकी साथ-साथ सब प्रकारसे रक्षा करें, हम दोनोंका आप साथ-साथ समुचितरूपसे पालन-पोषण करें, हम दोनों साथ-ही-साथ सब प्रकारसे बल प्राप्त करें, हम दोनोंकी अध्ययन की हुई विद्या तेजपूर्ण हो-कहीं किसीसे हम विद्यामें परास्त न हों और हम दोनों जीवनभर परस्पर स्नेह-सूत्रसे बँधे रहें, हमारे अंदर परस्पर कभी द्वेष न हो। हे परमात्मन् ! तीनों तापोंकी निवृत्ति हो।

शान्तिपाठ

ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं न इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि। ऋतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम् ।

ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!

Verse

शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा। शं न इन्द्रो बृहस्पतिः। शं नो विष्णुरुरुक्रमः। नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्मावादिषम्‌। ऋतमवादिषम्‌। सत्यमवादिषम्‌। तन्मामावीत्‌। तद्वक्तारमावीत्‌। आवीन्माम्‌। आवीद्वक्तारम्‌।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

Transliteration

śaṁ no mitraḥ śaṁ varuṇaḥ | śaṁ no bhavatvaryamā | śaṁ na indro bṛhaspatiḥ | śaṁ no viṣṇururukramaḥ | namo brahmaṇe | namaste vāyo | tvameva pratyakṣaṁ brahmāsi | tvāmeva pratyakṣaṁ brahmāvādiṣam | ṛtamavādiṣam | satyamavādiṣam | tanmāmāvīt | tadvaktāramāvīt | āvīnmām | āvīdvaktāram |
om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ|

Anvaya

मित्रः नः शं भवतु । वरुणः नः शं भवन्तु । अर्यमा नः शं भवतु । इन्द्रः बृहस्पति नः शं भवतु। उरुक्रमः विष्णुः नः शं भवतु । ब्रह्मणे नमः हे वायो ते नमः। त्वम् एव प्रत्यक्षं ब्रह्म असि। त्वाम् एव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि। त्वाम् एव ऋतं वदिष्यामि। त्वाम् एव सत्यं वदिष्यामि। तत् माम् अवतु। तत् वक्तारम् अवतु अवतु। माम् अवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

Anvaya Transliteration

mitraḥ naḥ śaṁ ( bhavatu )| varuṇaḥ ( naḥ ) śaṁ ( bhavantu )| aryamā naḥ śaṁ ( bhavatu )| indraḥ bṛhaspati ( naḥ ) śaṁ bhavatu| urukramaḥ viṣṇuḥ naḥ śaṁ ( bhavatu )| brahmaṇe namaḥ ( he )vāyo te namaḥ| tvam eva pratyakṣaṁ brahma asi| tvām eva pratyakṣaṁ brahma vadiṣyāmi| ( tvām eva ) ṛtaṁ vadiṣyāmi| ( tvām eva ) satyaṁ vadiṣyāmi| tat mām avatu| tat vaktāram avatu avatu| mām avatu vaktāram| om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ||

Meaning

Hari OM. Be peace to us Mitra. Be peace to us Varuna. Be peace to us Aryaman. Be peace to us Indra & Brihaspati. May farstriding Vishnu be peace to us. Adoration to the Eternal. Adoration to thee, O Vaiou. Thou, thou art the visible Eternal and as the visible Eternal I will declare thee. I will declare Righteousness! I will declare Truth! May that protect me! May that protect the Speaker! Yea, may it protect me! May it protect the Speaker. OM Peace! Peace! Peace!

Hindi Meaning

मित्र हमारे लिए शान्तिस्वरूप हों। वरुण हमारे लिए शान्तिस्वरूप हों। ये हमारे लिए शान्तिस्वरूप हों। इन्द्र एवं बृहस्पति हमारे लिए शान्तिस्वरूप ‘सुदूर-पदक्षेपी’ (उरुक्रम) विष्णु हमारे लिए शान्तिप्रदाता हों। ब्रह्म को नमन। हे वायु, आपको मेरा नमन। आप, आप ही प्रत्यक्ष ‘ब्रह्म’ हैं तथा प्रत्यक्ष ब्रह्म रूप में मैनें आपका ही कथन किया है। मैनें सत्याचरण (ऋतम्) का कथन किया है। मैनें सत्य का कथन किया है। उसी ने मेरी रक्षा की है। उसी ने ‘वक्ता’ की रक्षा की है। अवश्य ही उसने मेरी रक्षा की है; उसने ‘वक्ता’ की रक्षा की है। ॐ शान्तिः! शान्तिः! शान्तिः! हरिः ॐ!
*यह अंश (एषा वेदोपनिषत्) मूलपाठ में है। श्रीअरविन्द के अनुवाद में स्पष्टरूप से उल्लिखित नहीं है।-अनु.

Glossary

शम् नः – śam naḥ – be peace to us | मित्रः – mitraḥ – Mitra | शम् वरुणः – śam varuṇaḥ – be peace to us Varuna | अर्यमा – aryamā – Aryaman | नः – naḥ – to us | शम् भवतु – śam bhavatu – be peace | इन्द्रः – indraḥ – Indra | बृहस्पति च – bṛhaspati ca – be peace to us Brihaspati | उरुक्रमः विष्णुः – urukramaḥ viṣṇuḥ – May far striding Vishnu | न शम् – na śam – be peace to us | ब्रह्मणे नमः – brahmaṇe namaḥ – Adoration to the Eternal | वायो – vāyo – O Vayu! | ते नमः – te namaḥ – Adoration to thee | त्वम् एव – tvam eva – Thou, thou art | प्रत्यक्षम् ब्रह्म असि – pratyakṣam brahma asi – the visible Eternal | त्वाम् एव – tvām eva – thee | प्रत्यक्षम् ब्रह्म – pratyakṣam brahma – as the visible Eternal | वदिष्यामि – vadiṣyāmi – I will declare | ऋतम् वदिष्यामि – ṛtam vadiṣyāmi – I will declare Righteousness | सत्यम् वदिष्यामि – satyam vadiṣyāmi – I will declare Truth | तत् माम् अवतु – tat mām avatu – may that protect me | तत् वक्तारम् अवतु – tat vaktāram avatu – May that protect the Speaker | अवतु माम् – avatu mām – may it protect me | अवतु वक्तारम् – avatu vaktāram – may it protect the Speaker | ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः – om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ – |

ॐ इस परमेश्वरके नामका स्मरण करके उपनिषद्का आरम्भ किया जाता है। नः हमारे लिये: मित्रः (दिन और प्राणके अधिष्ठाता) मित्र देवताः शम् [भवतु]-कल्याणप्रद हों (तथा); वरुणः= (रात्रि और अपानके अधिनाला) वरुण (भी); शम् [ भवतु ]-कल्याणप्रद हों; अर्यमा = (चक्षु और सूर्य-मण्डलके अधिष्ठाता) अर्यमा; नः हमारे लिये; शम् भवतु-कल्याणकारी हों; इन्द्रः=(बल और भुजाओंके अधिष्ठाता) इन्द्र (तथा); बृहस्पतिः = (वाणी और बुद्धिके अधिष्ठाता) बृहस्पति (दोनों); नः हमारे लिये; शम् [ भवताम्] शान्ति प्रदान करनेवाले हों; उरुक्रमः त्रिविक्रमरूपसे विशाल डगोंवाले; विष्णुः-विष्णु (जो पैरोंके अधिष्ठाता हैं); नः हमारे लिये; शम् [ भवतु ] – कल्याणकारी हों; ब्रह्मणे (उपर्युक्त सभी देवताओंके आत्मस्वरूप) ब्रह्मके लिये; नमः नमस्कार है; वायो-हे वायुदेव; ते तुम्हारे लिये; नमः – नमस्कार है; त्वम् एव तुम ही; प्रत्यक्षम् प्रत्यक्ष (प्राणरूपसे होनेवाले); ब्रह्म असि ब्रह्म हो (इसलिये मैं); त्वाम् एव-तुमको ही; प्रत्यक्षम् प्रत्यक्ष; ब्रह्म-ब्रह्म; वदिष्यामि कहूंगा; ऋतम् (तुम ऋतके अधिष्ठाता हो, इसलिये मैं तुम्हें ऋत नामसे; वदिष्यामि पुकारूंगा; सत्यम् = (तुम सत्यके अधिष्ठाता हो, अतः मैं तुम्हें) सत्य नामसे; वदिष्यामि कहूंगा; तत्-वह (सर्वशक्तिमान् परमेश्वर); माम् अवतु मेरी रक्षा करे; तत्-वहः वक्तारम् अवतु वक्ताकी अर्थात् आचार्यकी रक्षा करे; अवतु माम्-रक्षा करे मेरी (और); अवतु वक्तारम् रक्षा करे मेरे आचार्यकी; ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः भगवान् शान्तिस्वरूप हैं, शान्तिस्वरूप हैं, शान्तिस्वरूप हैं।

शान्तिपाठ

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥* स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्थ्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।। ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!

Verse


भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाँसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः।
तस्मादुच्यते भद्रमिति ॥

Transliteration
bhadraṃ karṇebhiḥ śṛṇuyāma devā bhadraṃ paśyemākṣabhiryajatrāḥ ।sthirairaṅgaistuṣṭuvā~sastanūbhirvyaśema devahitaṃ yadāyuḥ।
tasmāducyate bhadramiti ॥

Hindi Meaning

याजकों के पोषक हे देवताओ! हम सदैव कल्याणकारी वचनों को ही अपने कानों से सुनें, नेत्रों से सदैव कल्याणकारी दृश्य ही देखें । हे देव ! परिपुष्ट अंगों से युक्त सुदृढ़ शरीर वाले हम आपको वन्दना करते हुए पूर्ण आयु तक जीवित रहें। जिससे हम भगवान् का काम कर सकें। 

देवाः हे देवगण ! [वयम् ] यजत्राः [सन्तः ] = हम भगवान्का यजन (आराधन) करते हुए; कर्णेभिः-कानोंसे; भद्रम् -कल्याणमय वचन; शृणुयाम-सुनें; अक्षभिः नेत्रोंसे; भद्रम् कल्याण (ही); पश्येम-देखें; स्थिरैः-सुदृढ़; अङ्गैः-अङ्गों; तनूभिः एवं शरीरसे; तुष्टुवांसः [वयम् ] = भगवान्की स्तुति करते हुए हमलोग; यत्-जो; आयुः आयु; देवहितम्-आराध्यदेव परमात्माके काम आ सके; [ तत् ]-उसका; व्यशेम-उपभोग करें; वृद्धश्रवाः सब ओर फैले हुए सुयशवाले; इन्द्रः इन्द्र; नः हमारे लिये; स्वस्ति दधातु कल्याणका पोषण करें; विश्ववेदाः सम्पूर्ण विश्वका ज्ञान रखनेवाले; पूषा-पूषा; नः हमारे लिये; स्वस्ति [ दधातु ]-कल्याणका पोषण करें; अरिष्टनेमिः अरिष्टोंको मिटानेके लिये चक्रसदृश शक्तिशाली; तार्यः नः हमारे लिये; स्वस्ति [दधातु]-कल्याणका पोषण करें;

(तथा) बृहस्पतिः (बुद्धिके स्वामी) बृहस्पति भी; नः हमारे लिये; स्वस्ति [ दधातु]-कल्याणकी पुष्टि करें; ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः परमात्मन् ! हमारे त्रिविध तापकी शान्ति हो।

व्याख्या- गुरुके यहाँ अध्ययन करनेवाले शिष्य अपने गुरु, सहपाठी तथा

मानवमात्रका कल्याण-चिन्तन करते हुए देवताओंसे प्रार्थना करते हैं कि ‘हे देवगण ! हम अपने कानोंसे शुभ-कल्याणकारी वचन ही सुनें। निन्दा, चुगली, गाली या दूसरी-दूसरी पापकी बातें हमारे कानोंमें न पड़ें और हमारा अपना जीवन यजन-परायण हो-हम सदा भगवान्की आराधनामें ही लगे रहें। न केवल कानोंसे सुनें, नेत्रोंसे भी हम सदा कल्याणका ही दर्शन करें। किसी अमङ्गलकारी अथवा पतनकी ओर ले जानेवाले दृश्योंकी ओर हमारी दृष्टिका आकर्षण कभी न हो। हमारे शरीर, हमारा एक-एक अवयव सुदृढ़ एवं सुपुष्ट हो-वह भी इसलिये कि हम उनके द्वारा भगवान्का स्तवन करते रहें। हमारी आयु भोग-विलास या प्रमादमें न बीते। हमें ऐसी आयु मिले, जो भगवान्के कार्यमें आ सके। [देवता हमारी प्रत्येक इन्द्रियमें व्याप्त रहकर उसका संरक्षण और संचालन करते हैं। उनके अनुकूल रहनेसे हमारी इन्द्रियाँ सुगमतापूर्वक सन्मार्गमें लगी रह सकती हैं, अतः उनसे प्रार्थना करनी उचित ही है। जिनका सुयश सब ओर फैला है, वे देवराज इन्द्र, सर्वज्ञ पूषा, अरिष्टनिवारक तार्थ्य (गरुड) और बुद्धिके स्वामी बृहस्पति- ये सभी देवता भगवान्की दिव्य विभूतियाँ हैं। ये सदा हमारे कल्याणका पोषण करें। इनकी कृपासे हमारे सहित प्राणिमात्रका कल्याण होता रहे। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक- सभी प्रकारके तापोंकी शान्ति हो।

ॐ असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्माऽमृतं गमय

asato mā sadgamaya tamaso mā jyotirgamaya mṛtyormā’mṛtaṁ gamaya

“Lead me from the unreal to the real. From darkness lead me to light. From death lead me to immortality.” When the mantra (verse) says: “Lead me from the unreal to the real,” “the unreal” means death and the “real,” immortality; so it says, “From death lead me to immortality,” that is to say, “Make me immortal.” When it says: “From darkness lead me to light,” “darkness” means death and “light,” immortality; so it says: “From death lead me to immortality,” that is to say, “Make me immortal.” In the verse: “From death lead me to immortality,” there is nothing that is hidden. 

मुझे असत् से सत् की ओर ले जाओ, मुझे अन्धकारसे प्रकाश की ओर ले जाओ’, ‘मुझे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाओ।

मा सद्गमय’, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, ‘मृत्योर्मामृतं गमय’।3

वह जिस समय कहता है- ‘मुझे असत् से सत् सत की ओर ले जाओ’ यहाँ मृत्यु ही असत् है और अमृत सत् हैं। अतः वह यही कहता है कि मुझे मृत्यु से अमृत की ओर ले जाओ अर्थात् मुझे अमर कर दो । जब वह कहता है- ‘मुझे अन्धकारसे प्रकाशकी ओर ले जाओ’ तो यहाँ मृत्यु ही अन्धकार है और अमृत ज्योति है अर्थात वह यही कहता है कि मुझे मृत्यु से अमृत की ओर ले जाओ अर्थात्, मुझे अमर कर दो । और जब वह यह कहता है की मुझे मृत्यु से अमृत की ओर ले जाओ तो इसमें तो कोई बात छिपी ही नहीं है।.

मुझे असत् से सत् की ओर ले जाओ, मुझे अन्धकारसे प्रकाश की ओर लेजाओ’, ‘मुझे मृत्युसे अमरत्व की ओर ले जाओ।

‘असतो मा सद्गमय’, ‘तमसो मा ज्योनतगथमय’, ‘मृत्योमाथमृतां गमय’।

3

शान्तिपाठ

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णमादाय पूर्णस्य पूर्णमेवावशिष्यते ॥ *

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।

om pūrṇamadaḥ pūrṇamidaṁ pūrṇāt pūrṇamudacyate
pūrṇasya pūrṇamādāya pūrṇamevāvaśiṣyate
om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ

Om. Complete in itself is that yonder and complete in itself that which here and the complete ariseth from the complete: but when thou takest the complete from its fullness, that which remaineth is also complete. Om. Peace! Peace! Peace!

ॐ सच्चिदानन्दघन; अदः वह परब्रह्म; पूर्णम् = सब प्रकारसे पूर्ण है; इदम् यह (जगत् भी); पूर्णम्-पूर्ण (ही) है; (क्योंकि) पूर्णात्-उस पूर्ण ही; पूर्णम् = यह पूर्ण; उदच्यते-उत्पन्न हुआ है; पूर्णस्य पूर्णक; पूर्णम्-पूर्णको; आदाय निकाल लेनेपर (भी); पूर्णम्-पूर्ण; एव-ही; अवशिष्यते-बच रहता है।

व्याख्या- वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म पुरुषोत्तम सब प्रकारसे सदा- सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत् भी उस परब्रह्मसे ही पूर्ण है; क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तमसे ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार परब्रह्मकी पूर्णतासे जगत् पूर्ण है, इसलिये भी वह परिपूर्ण है। उस पूर्ण ब्रह्ममेंसे पूर्णको निकाल लेनेपर भी वह पूर्ण ही बच रहता है।

त्रिविध तापकी शान्ति हो ।

Reference

https://upanishads.org.in/

GitaPress Gorakhpur Nine Upanishads

Acknowledgements

  • The  voice recording of chanting  in  mp3 format has been Shared by Sri Bala R Ji. 
  • Text has been taken from the Book Mantrapushpam  (Published by RK Math ,Khar , Mumbai )