Weekly Classes
SN | Date | Details |
1 | 02 Jul 2020 | Participants : 13 Topic : Work and Its secret Details of Meeting No 01 |
2 | 09 Jul 2020 | Participants : 11 Topic : Work and Its secret Continued Weblink Details of Meeting No 02 |
3 | 17 Jul 2020 | Participants : 18 Letter 1) Yagneshwar Bhattacharya 05 Jan 1890 2) Sri Lala Govind Sahay 30 Apr 1891 Details of Meeting No 03 |
4 | 23 Jul 2020 | Participants : 23 Letter to Pandit Shankar Lal of Khetri 20 Sept 1892 Details of Meeting No 04 |
5 | 31 Jul 2020 | Participants : 19 A MESSAGE OF SYMPATHY TO A FRIEND (Written from Bombay on 23rd May, 1893 ) To D. R. Balaji Rao who just had a severe domestic affliction. Details of Meeting No 05 |
6 | 06 Aug 2020 | Participants : 19 Letter – Shrimati Indumati Mitra BOMBAY, 24th May, 1893. Details of Meeting No 06 |
7 | 13 Aug 2020 | Participants : 19 Letter to Abasinga Peruma Chicago – 2nd November, 1893. Details of Meeting No 07 |
8 | 20 Aug 2020 | Participants : 24 Letter to Disciples in Madras 24th January, 1894 Details of Meeting No 08 |
9 | 27 Aug 2020 | Participants : 19 Letter to Abasinga Perumal 12th January, 1895 Details of Meeting No 09 |
10 | 03 Sep 2020 | Participants : 19 कर्म का रहस्य SECRET BEHIND ACTION Details of Meeting No 10 |
11 | 11 Sep 2020 | Participants : 19 Buddhi Yoga Gita 02.29 & 10.10 Details of Meeting No 11 |
12 | 17 Sep 2020 | Participants : 13 प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान पर महान है EACH IS GREAT IN HIS OWN PLACE Details of Meeting No 12 |
13 | 24 Sep 2020 | Participants : 19 कर्म का रहस्य ( प्रथम भाग ) THE SECRET OF WORK (Part I) Details of Meeting No 13 |
14 | 01 Oct 2020 | Participants : 14 कर्म का रहस्य ( भाग-II ) THE SECRET OF WORK (Part II) Details of Meeting No 14 |
15 | 08 Oct 2020 | Details of Meeting No 15 |
16 | 15 Oct 2020 | Details of Meeting No 16 |
17 | 22 Oct 2020 | Details of Meeting No 17 |
Meeting No 01
SN 01 02 Jul 2020 Participants : 13 Topic : Work and Its secret
Following Attended
Key Points
Reference Documents
Meeting No 02
Meeting No 03
Meeting No 04
Meeting No 05
Meeting No 06
Meeting No 07
Meeting No 08
Meeting No 09
Meeting No 10
Meeting No 11
Meeting No 12
Meeting No 13
Meeting No 14
Total Participants : 14
Theme : कर्म का रहस्य ( भाग-II ) The Secret of Work ( Part II)
मुख्य बिंदु
स्वामी की तरह कर्म करो , जीओ। स्वत्रन्त्र की तरह गुलाम की तरह नहीं। बंधन में नहीं। स्वत्रन्त्र होने से प्रेम हो सकता है , आनंद होता है ; दास भाव से नहीं। गुलाम में ईर्ष्या है , पीड़ा है , दुख है। बंधन आती है आसक्ति से।
अनासक्त होकर कर्म करना , मुझे क्या मिलेगा हमेशा यह नहीं सोचकर , दान के भाव से , सिर्फ दे सकने के भाव से कर्म , बदले में कुछ पाने की आकाँक्षा नहीं , उम्मीद नहीं लगा के रखना। जैसे प्रेम और पूजा भाव से भगवान् को सब समर्पण कर देते हैं। सच्चा प्रेम होगा तो आनंद होगा, दर्द , पीड़ा क्लेश नहीं।
हमेशा दान का भाव रखने की चेष्टा करना है। जिसे हम दान देते हैं , उनके प्रति कृतज्ञ भाव रखना कि हमें ऐसा मौका मिला अनासक्ति का , बंधन मुक्त होने का।
आत्मन , प्रकृति के लिए नहीं है। प्रकृति आत्मन के लिए नहीं है, उसके शिक्षा के लिए है। भोग का अंत नहीं।
कुछ विचार जो रखे गए
स्वामी भवेशानन्द जी –
IGNORANCE – Bhoga & Our Attachment to It – Why NO peace and No lasting Happiness Nature as Teacher – The Durga Pooja and Achieving our Life’s Purpose – Question & Answer and Discussions
IGNORANCE जब हम देखते हैं कि हम खुद और दुनिया उल्टे तरफ जा रही है हैं हममे इतनी अज्ञानता है , Ignorance तो अवाक हो जाना होता है। सब कुछ जानने पर भी , जब हम अन्यमनस्क होते हैं, ज़रा अचेत होते हैं , या अपने कार्य में व्यस्त होते हैं, तो हम भूल जाते हैं कि आनन्द बाहर नहीं, अंदर ही है। जैसे कस्तूरी मृग के नाभि में परिपक्व होने पर अति मोहक खुसबू का रिसाव होता है। उसे ऐसा लगता है कि यह खुसबू बाहर में है और उसे खोजता वह सभी ओर भागता फिरता है। हम भी भागते फिरते हैं , आनन्द बाहर ढूँढ़ते रहते है। मोको कहाँ ढूंढो बन्दों मैं तो तेरे पास में – मैं पर्वत, गुफा , वन में नहीं हूँ। मैं तो हृदय के अंदर में ही हूँ।मैं तो योगी के अंदर में ही हूँ।
इस बात को समझाने के लिए भगवान बुद्ध ने एक कहानी सुनाया था। एक बूढ़ी माँ का सिक्का गिर गया। तो वो के झौंपड़ी बाहर में ढूंढने लगी। सुबह से शाम तक ढूंढ ही रही है। तो गाँव वालों ने पूछा ” बूढ़ी माँ ! क्या हुआ ? बाहर क्या ढूंढ रहीं हैं। सुबह से अभी तक भी नहीं मिला ? आईए हम लोग भी ढूंढने में मदद करते हैं। ” ” अच्छा बताईए तो कहाँ पर गिरा है ? ” तो बूढी ने कहा ” घर के अन्दर ही गिरा था ” तो लोगों ने पूछा ” तो बाहर क्यों ढूंढ रहीं हैं ? क्या सिक्का अंदर से बाहर उछल कर चला गया था ? ” बूढ़ी माँ ने कहा ” नहीं ! अंदर ही है।पर अन्दर तो बहुत अँधेरा है , तो कैसे ढूँढूँ ? इसलिए बाहर में ढूंढ रही हूँ। “
तो लोगों ने कहा ” अरे आप इतने बुद्धू कैसे हैं ? आपका दिमाग इतना भी काम नहीं कर पा रहा है ? सिक्का अन्दर है तो बाहर कैसे मिलेगा ? अगर सिक्का अंदर है , तो अंदर लाईट जलाईए , अंदर दिखने लगेगा और तब आप ढूंढ पाएँगी। “
तब बुढ़िया बोली ” अरे सिर्फ़ मैं ही ऐसी बुद्धू हूँ ? सिर्फ़ मेरा ही दिमाग काम नहीं कर रहा ? पूरी दुनिया तो ऐसी ही है आनन्द , शांति सब मन के अंदर ही है। पर के अंदर अँधेरा है। पूरी दुनिया बाहर यह सब खोज रही है , यह सोचकर कि अन्दर तो अँधेरा है , बाहर ही खोजते हैं।
Bhoga & Our Attachment to It
भोग के माध्यम से हम परम आनन्द पाने की चेष्टा करते हैं, पर हम देखते हैं वह नहीं मिल पाता। हम दुनिया, देश सामाज में ऐसी अनेक घटनाओं को देखते हैं जहाँ ऐसा होता देखा गया है। अभी भी मीडिया में ऐसी कुछ खबरें हैं , जहाँ हम देखते हैं कि भोग के बाद भी शान्ति नहीं मिल पाती। श्रीमद भागवत में ऐसा ही उद्धरण है , ययाति का। सारा जीवन भोग करते करते वृद्ध हो जाता है , पर तृप्ति नहीं। तब अपने पुत्रों से यौवन माँगता है , और छोटा पुत्र उसका वृद्धावस्था ले लेता है और बदले में अपने यौवन दे देता है। फिर भी अत्यंत भोग के बाद भी उसे तृप्ति नहीं होती। तब आखिर में वह यह समझ पाता है , भोग के द्वारा भोग की तृप्ति नहीं होती। जैसे आग में घी डालने ने आग का शमन नहीं होता , बल्कि और भड़कता है।
आँख से अच्छा मनोरम देखना चाहता हैं , कान से मधुर बातें सुनना चाहता हैं , जीभ से स्वादिष्ट कुछ खाना-पीना चाहते हैं , नाक से सुगन्धित सूंघना चाहते हैं , त्वचा से कोमल स्पर्श करना चाहते हैं। अति उपयोग से समय से ज्यादा देर मोबईल स्क्रीन देखने से आँख ख्रराब होने लगता है , ईयर=फ़ोन ज्यादा इस्तेमाल से कान खराब होने लगता है। और भोग के अति होने से सभी इन्द्रियाँ अपना तेज़ खोने लगती हैं। ज्यादा मीठा तो डाईबीटीज़ , मधुमेह को न्यौता , जयादा माँस-मछली-अण्डे तो कोलेस्ट्राल का बढ़ना , ज्यादा फ़ास्ट-फ़ूड खाया तो तरह तरह की बीमारियाँ। तो हम देखते हैं , बाकी लोगों के जीवन में और अपने अनुभव में में भी , कि बाहरी सुख प्राप्त करने करने की चेष्टा में हम आनन्द प्राप्त नहीं कर पाते।
Why NO peace and No lasting Happiness
Nature as Teacher
धन , रुपया , प्रतिष्ठा , सम्मान , मुक्त जीवन , सब प्राप्त करके भी शान्ति क्यों नहीं है ? बाहर में इतना कुछ प्राप्त करके भी ड्रग के शरण में क्यों ?
आत्मा प्रकृति के लिए नहीं , प्रकृति आत्मा के लिए है।
Experience is the Best Teacher . प्रकृति सब समय शिक्षा दे रही है। पर मन शांत नहीं है,स्थिर नहीं है , पवित्र नहीं है , इसलिए हम शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे। मन शांत है , एकाग्र है उनके लिया शिक्षा ग्रहण संभव है। Knowledge is Power . सो शक्ति आ रही है। एक ही कक्षा में कई हैं , कोई ध्यान से , एकाग्रता से , मेहनत से ग्रहण करता है और कोई चंचल मन से ग्रहण नहीं कर पाता।एक ही डिग्री , पर एक लाखों की नौकरी पा लेता है और अन्य दस हज़ार के लिए दर दर भटकता है। एक ही टीचर , एक ही कॉलेज , एक ही माहौल पर मन एकाग्र है , उतना मन शिक्षण लेने के लिए तैयार नहीं है। उसी तरह प्रकृति एक यूनिवर्सिटी की तरह। जिनका मन तैयार है , परिपक्व है , शिक्षा ले पाता है। एकाग्र , शांत चित्त मन है तो हम शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं। शिक्षा नहीं ले पा रहे, आत्मसात नहीं कर पाते। Nature is an aide to help realise our Self .प्रकृति आत्मन् के लिए है । जीवन का उद्देश्य है भगवान् लाभ , Self-Realization आत्म-उपलब्धि, खुद को जानना। सब आनन्द , शांति चाहते हैं। तो कह सकते हैं , जीवन का उद्देश्य आनन्द प्राप्त करना है। जीवन का जो शिक्षा है , जीवन का अनुभव है वह , जो हमने ध्यान में पाने की कोशिश किया है , सोचा है कि हममे अनन्त शक्ति है, अनन्त आनन्द है, अनन्त प्रेरणा है, अनन्त प्रेम है, अनन्त विशवास है- यह अनादि काल से रामायण , महाभारत काल से , उसके पहले उपनिषद् के युग से ,भगवद गीता में , आधुनिक युग में श्री रामकृष्ण ने भी बताया है और हमेशा से बताया जा रहा है।वह लक्ष्य कैसे प्राप्त हो ,कैसे उस परम आनंद को प्राप्त किया जाए।
अंगुष्ठमात्र: पुरुषोऽन्तरात्मा सदा जनानां हृदये सन्निविष्ट ( कठोपनिषद में कहा गया है) . Supreme Brahma, Purusha is present in hearts of all being as thought the size of a thumb. He is present in the hearts of all beings सर्वोच्च ब्रह्मा, पुरुष सभी प्राणियों के दिलों में मौजूद है और एक अंगूठे के आकार के हैं । अंगुष्ठमात्रः पुरुषो Why don’t we perceive it. This is the training. Swamiji says – One thing is trying to manifest other is trying to suppress.
यह सच है , झूठ नहीं है , फिर भी हमारे समझ में क्यों नहीं आ रहा है , हमारे व्यवहार में क्यों नहीं परिणत हो रहा है।सच होते हुए भी हमारे समझ में नहीं आ रहा क्योंकि हमारा मन शांत नहीं है , तैयार नहीं है। तो किस तरह प्रकृति हमारी सहयता करती है हमारे वास्तविक स्वरूप को पहचानने में। ( Real Self , our Real Nature ) . यही प्रशिक्षण है , यही ट्रेनिंग है। यही Mind-Set है , यही अनुभव है , Expereince है , यही चुतौती है जीवन का , Challenge of Life । स्वामीजी कहते हैं – एक बहार जाने का कोशिस कर रहा है , एक अंदर जाने का , इसी का संग्राम जीवन है। इन्द्रियाँ आनंद को बाहर खोज रहा है , चंचल हो रहा है , और मन अच्छा होने पर अंदर की और खींच रहा है , संयम , control-power अंदर में ही है। यह जो संघर्ष चल है , यही जीवन है। यह जीवन देवता – असुर का युद्ध है। हर इन्द्रिय में देवता -असुर का युद्ध है। कान में – एक तरफ फ़िल्मी गाने , पॉप गीत के प्रति आकर्षण है , और दूसरी ओर भवाद भजन का आनंद खोज रहा है, या फिर कोई स्वामीजी का लेक्चर ही। आँख – फ़िल्मी स्टार को देखना का आकर्षण और दूसरी ओर कोई अच्छा ज्ञानवर्धक लेक्चर देखना , रामायण , महाभारत, भगवान् चरित देखने का आकर्षण।जीभ – सात्विक या तीखा , तला हुआ स्वादिष्ट पर स्वास्थ के लिए हानिकारक कुछ खाने की इच्छा , बस स्वादिष्ट होना चाहिए।
The Durga Pooja and Achieving our Life’s Purpose
माँ दुर्गा
देवी पक्ष शुरू होने वाला है ( 17 अक्टूबर ) – माँ दुर्गा असुर नाशिनी है। माँ दुर्गा का आगमन होगा।
तब
सरस्वती माँ आएगी : वह है प्रतीक देवी – विद्या, ज्ञान विवेक ; उनका वाहन है राजहँस। राजहँस दूध और पानी को अलग कर सकता है और सिर्फ पानी ग्रहण करता है ; राजहँस विवेक का प्रतीक है। असुर का नाश होने से , मन के साफ़ और शांत होने से , विवेक जाग्रत होता है। खराब , बुरा और सही के बीच भेद कर पाने की क्षमता बढ़ेगी। जब हम विज्ञानमय कोष पर ध्यान करते है , प्राणायाम करते हैं , हमारे मन का विवेक करने की क्षमता में विकास होता है। Knowledge is Power शक्ति आएगा . विश्वास आएगा ,। आत्म-बल और विश्वास कि हम ईश्वर हैं ,भगवान हैं, श्री रामकृष्ण हैं जो ज्ञान स्वरूप , आनंद स्वरूप शक्ति स्वरूप। या सर्वभूतेष शक्ति रूपेण संस्थिता ;
लक्ष्मी का आना ;
जागतिक रूप में धन आएगा , लक्ष्मी आएगी। लक्ष्मी का वाहन है ऊल्लू।ऊल्लू रात में देख पाता है। धन आने से अहँकार भी अक्सर आ जाता है। हमारा विचार करने की क्षमता घट जाती है , मोह आ जाता है, विवेक, अच्छा देख पाने की क्षमता चली जाती है। असुर नाश होने से ईमानदारी से धन कमाया जाने पर , यह अहँकार , घमण्ड नहीं आएगा।
गणेश आगमन – सिद्धि आएगी ( Success will come) । गणेश का वाहन है चूहा। गणेश का सर हाथी जैसा है , बड़ा है और चूहा छोटा है । यानि स्वयं , सिद्धि लाभ के बाद, बड़ा होने पर भी घमंड नहीं आएगा , छोटे की अवहेलना नहीं करेंगे। समदर्शन होगा ( Sense of Equality, Will not neglect others ) , समभाव होगा।
कार्तिक आगमन : कार्तिक सुन्दर हैं और गति का प्रतीक हैं, सत्यम शिवम् सुंदरम हैं। जो भी सुन्दर है ,अच्छा है वह हमारे जीवन में , हमारे चिंतन में आएगा। मन के असुर का नाश होगा। मन का असुर यानि यह सब बुरा भाव जैसे कामना, वासना , ईर्ष्या , अहँकार का नाश होगा। जितना नाश होगा उतना ही हमारे जीवन में सरस्वती, लक्ष्य, सिद्धि, गणेश, कार्तिक, का आना होगा।
या सर्वभूतेष शक्ति रूपेण संस्थिता
या सर्वभूतेष भक्ति रूपेण संस्थिता
या सर्वभूतेष ज्ञान रूपेण संस्थिता
या सर्वभूतेष विद्या रूपेण संस्थिता
प्रकृति या भोग के माध्यम से आनन्द नहीं है , शान्ति नहीं है। थोड़ा-मोड़ा भोग करके विचार के माध्यम से हमारे अंदर जो शक्ति , आनन्द है वह आएगा। यह आनन्द जीवन का लक्ष्य है।
Question & Answer and Discussions :
स्वामी भवेशानन्द जी : हमारे दैनिक जीवन में, और आज कल जो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा – उसके उदारण देने के लिए स्वामीजी ने प्रतिभागियों को कहा।
श्री विकास, सुब्रत, बिश्वनाथ,आलोक समीर जी , , सौरभ ने श्री तेज नारायण सिंह ‘ तरुण ‘ जी अपने विचार और अनुभव रखे।
1) Nature is For Soul , Soul is NOT For Nature. इसके प्रतिफल में दर्द नहीं होता। सिर्फ सुख ही होता है। । ईर्ष्या, स्वार्थ ,क्लेश का भाव उत्पन्न नहीं होगा, सच्चा प्रेम वह है , जिसमें बन्धन नहीं है,बदले में पाने की कोई अभिलाषा नहीं रहती और इस त्याग में शांति है सुख है ( त्यागत् शांति: अनंतरम् ) । और यही सच्चे प्रेम की परख है।
2) कुछ फ़िल्मी सितारे : उन्होंने नाम, यश , धन , शक्ति बहुत कुछ प्राप्त किया। फिर भी कभी नशा , कभी खुदखुशी , या कभी गलत संगत के कारण असमय मारे गए। शायद वैराग्य भाव की कमी है , बाहर में आनन्द खोजते रहे और उन्हें शांति नहीं मिली । दूसरा यह कि जो देना है वह निःस्वार्थ भाव से देना का संस्कार बनाना है। तब आनन्द मिलेगा काम करने में , और देने मैं।
3) अपना अनुभव। उदाहरण के लिए अगर 12 वर्ष तक नौकरी प्राप्त करने के लिए अनेक त्याग, काफी पढ़ाई। जब तैयारी के समय मन चंचल था , नौकरी प्राप्त के बाद भी मन की चंचलता रही। पहले लगता था खाना -पीना , कपड़ा-लत्ता , बांग्ला-गाड़ी , घर बस जाए , तो जीवन में सुकून आ जायेगा। पर जब कि इन सब को प्राप्त करना अच्छा लगा , उचित भी लगा,पर वह सुकून वह आनन्द अब भी दूर ही लगता है। मन आज भी चंचल है, थकावट है , निर्लिप्त नहीं हो पाया है। वह शान्ति, वह सद्गुण , यह हम अपने जीवन में देख नहीं पा रहे।मानसिक स्तर पर यह स्पष्ट होता जा रहा है कि बाहर की प्राप्ति , उपलब्धि के द्वारा शांति और आनन्द तो प्राप्त नहीं हो पा रहा।भौतिक प्राप्ति से क्या आनन्द प्राप्त हो गया ? अपने अनुभव में हम पाते हैं कि नहीं, ऐसा नहीं हुआ।
4) दो चक्के हैं : भौतिक और आध्यात्मिक। दोनों का संतुलन बना कर चलना होता है।
5) नलिनी विनोदिनी पास सब है , पर आनन्द नहीं। ड्रग लेना क्यों , आनन्द नहीं हो पाता।
उदाहरण अमिताभ, सचिन तेंदुलकर , लता मंगेशकर – इनलोगों ने कुछ हद तक जीवन में संयम का पालन किया है और आज भी इनके जीवन में संतुलन है।
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उद्धरण
Kathopnishad :
अंगुष्ठमात्रः पुरुषो ज्योतिरिवाधूमकः ।ईशानो भूतभव्यस्य स एवाद्य स उ श्वः । एतद्वै तत् ।। 2.1.13 ।।
अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा सदा जनानां हृदये सन्निविष्टः ।तं स्वाच्छरीरात् प्रवृहेन्मुञ्जादिवेषीकां धैर्येण । तं विद्याच्छुक्रममृतं तं विद्याच्छुक्रममृतमिति ।। 2.3.17 ।।
देवी पक्ष The most auspicious period when Durga Puja is celebrated – the ‘Devi Paksha‘ – starts on October 17 with ‘Pratipad’ or the first day of the Sharadiya Navratri.
कस्तुरी मृग‘ दुर्लभ वन्य जीव प्रजाति इस मृग की नाभि में गाढ़ा तरल (कस्तूरी) होता है जिसमें से मनमोहक खुशबू की धारा बहती है। बता दें कि कस्तूरी केवल नर मृगों में ही पाया जाता है। यह जीव उत्तराखंड के अलावा अन्य हिमालयी क्षेत्रों (हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, सिक्किम) में भी पाया जाता है।कस्तुरी मृग को ‘हिमायलन मस्क डियर’ के नाम से भी जाना जाता है। वैसे इसका वैज्ञानिक नाम ‘मास्कस क्राइसोगौ’ है।
मोको कहाँ ढूंढें बन्दे, मैं तो तेरे पास में. ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में. ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में. ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में. कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ विशवास में. खोजी करो पल में मिल जाऊँ एक पल की तलाश मे!
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