Topic: Mind Control Made Easy
( Focus on 16th Chapter Bhagavad Gita )
Date 22 Nov 2021 to 26 Nov 2021
Mind Control Made Easy By Swami Bodhamayanandaji – Focus on Teachings of Bhagavad Gita
Resources :
Gita Online https://www.gitasupersite.iitk.ac.in/
Gita By Swami Ranganathananda https://brahmavad.in/swami-ranganathananda/
Book E-Book by VHE for this class ( The Art of Meditation)
Date 22 Nov 2021
Time 6;15 to 7:45 pm
About 32 to 38 Participants
Suggestions
a) Put on a Lamp Deepam
b) Put on Incense for fragrance and better ambience
c) Have a Copy of Gita – Dhyan Shlokas & Chapter 16
d) Note book , pen paper, writing pad , Study Table / Desk
e) Asana Mat for Meditation , Dhyana
f) Family members – Request Leave me Alone for 90 min
Gita Dhyana Slokas
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ॐ पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन स्वयं व्यासेन ग्रथितां पुराणमुनिना मध्ये महाभारतम् ।
अद्वैतामृतवर्षिणीं भगवतीम्- अष्टादशाध्यायिनीम् अम्ब त्वामनुसन्दधामि भगवद्- गीते भवद्वेषिणीम् ॥ १॥
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र ।
येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्वालितो ज्ञानमयः प्रदीपः ॥ २॥
प्रपन्नपारिजाताय तोत्रवेत्रैकपाणये ।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय गीतामृतदुहे नमः ॥ ३॥
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपाल नन्दनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ॥ ४॥
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥ ५॥
भीष्मद्रोणतटा जयद्रथजला गान्धारनीलोत्पला शल्यग्राहवती कृपेण वहनी कर्णेन वेलाकुला ।
अश्वत्थामविकर्णघोरमकरा दुर्योधनावर्तिनी सोत्तीर्णा खलु पाण्डवै रणनदी कैवर्तकः केशवः ॥ ६॥
पाराशर्यवचः सरोजममलं गीतार्थगन्धोत्कटं नानाख्यानककेसरं हरिकथा- सम्बोधनाबोधितम् ।
लोके सज्जनषट्पदैरहरहः पेपीयमानं मुदा भूयाद्भारतपङ्कजं कलिमल- प्रध्वंसिनः श्रेयसे ॥ ७॥
मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिम् ।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम् ॥ ८॥
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवैः वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैः गायन्ति यं सामगाः ।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनः यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः देवाय तस्मै नमः ॥ ९॥
01 Bhagavad Gita Lecture by Swami Ranganathanandaji: Gita Dhyana & Introduction
Or
Here Other One http://www.ramakrishnamath.in/e-lectures/?p=316
Bhagavad Gita Dhyana Sloka (With Lyrics) || Chanting By Swami Sarvagananda Ji || গীতা ধ্যান শ্লোক
Other Sources
Dhyana Slokam with Lyrics | Srimad Bhagavad Gita | T S Ranganathan #learnBhagwatGita #learntochant
Bhagavad Gita Dhyana Shlokas Chanting by Padmini Chandrashekar (Learning Aid)
Geeta Dhyanam | गीता ध्यानम् | Shrimad Bhagwad Geeta |
References
Dhyan Slokas RK Mission http://ish.rkmvu.ac.in/wp-content/uploads/2021/08/Janmashtami_RKMVERI_2021_Devnagari.pdf
http://aumamen.com/topic/bhagavad-gita-dhyanam-dhyana-slokas
Swami Sarveshananda śrīmadbhagavadgītā – gītā dhyānam – श्रीमद्भगवद्गीता – गीता ध्यानम्
https://www.estudantedavedanta.net
Date 22 Nov 2021
Dhyana Sloka
Gita Chapter 16
मूल श्लोकः
श्री भगवानुवाच
अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।16.1।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda ।।16.1।। श्री भगवान् ने कहा — अभय, अन्त:करण की शुद्धि, ज्ञानयोग में दृढ़ स्थिति, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप और आर्जव।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas ।।16.1।।श्रीभगवान् बोले — भयका सर्वथा अभाव; अन्तःकरणकी शुद्धि; ज्ञानके लिये योगमें दृढ़ स्थिति; सात्त्विक दान; इन्द्रियोंका दमन; यज्ञ; स्वाध्याय; कर्तव्य-पालनके लिये कष्ट सहना; शरीर-मन-वाणीकी सरलता।
English Translation By Swami Gambirananda16.1 The Blessed Lord said Fearlessness, purity of mind, persistence in knowledge and yoga, charity and control of the external organs, sacrifice, (scriptural) study, austerity and recititude;
मूल श्लोकः
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।।16.2।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda।।16.2।। अहिंसा, सत्य, क्रोध का अभाव, त्याग, शान्ति, अपैशुनम् (किसी की निन्दा न करना), भूतमात्र के प्रति दया, अलोलुपता , मार्दव (कोमलता), लज्जा, अचंचलता।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas।।16.2।।अहिंसा, सत्यभाषण; क्रोध न करना; संसारकी कामनाका त्याग; अन्तःकरणमें राग-द्वेषजनित हलचलका न होना; चुगली न करना; प्राणियोंपर दया करना सांसारिक विषयोंमें न ललचाना; अन्तःकरणकी कोमलता; अकर्तव्य करनेमें लज्जा; चपलताका अभाव।
English Translation By Swami Gambirananda16.2 Non-injury, truthfulness, absence of anger, renunciation, control of the internal organ, absence of vilification, kindness to creatures, non-covetousness, gentleness, modesty, freedom from restlessness;
मूल श्लोकः
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।16.3।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.3।। हे भारत ! तेज, क्षमा, धैर्य, शौच (शुद्धि), अद्रोह और अतिमान (गर्व) का अभाव ये सब दैवी संपदा को प्राप्त पुरुष के लक्षण हैं।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.3।।तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीरकी शुद्धि, वैरभावका न रहना और मानको न चाहना, हे भरतवंशी अर्जुन ! ये सभी दैवी सम्पदाको प्राप्त हुए मनुष्यके लक्षण हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.3 Vigour, forgiveness, fortitude, purity, freedom from malice, absence of haughtiness-these, O scion of the Bharata dynasty, are (the alties) of one born destined to have the divine nature.
मूल श्लोकः
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्।।16.4।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.4।। हे पार्थ ! दम्भ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोर वाणी (पारुष्य) और अज्ञान यह सब आसुरी सम्पदा है।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.4।।हे पृथानन्दन ! दम्भ करना, घमण्ड करना, अभिमान करना, क्रोध करना, कठोरता रखना और अविवेकका होना भी — ये सभी आसुरीसम्पदाको प्राप्त हुए मनुष्यके लक्षण हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.4 O son of Prtha, (the attributes) of one destined to have the demoniacal nature are religious ostentation, pride and haughtiness, [Another reading is abhimanah, self-conceit.-Tr.], anger as also rudeness and ignorance.
मूल श्लोकः
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।16.5।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.5।। हे पाण्डव ! दैवी सम्पदा मोक्ष के लिए और आसुरी सम्पदा बन्धन के लिए मानी गयी है, तुम शोक मत करो, क्योंकि तुम दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए हो।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.5।।दैवी-सम्पत्ति मुक्तिके लिये और आसुरी-सम्पत्ति बन्धनके लिये है। हे पाण्डव तुम दैवी-सम्पत्तिको प्राप्त हुए हो, इसलिये तुम्हें शोक (चिन्ता) नहीं करना चाहिये।
English Translation By Swami Gambirananda
16.5 The divine nature is the Liberation, the demoniacal is considered to be for inevitable bondage. Do not grieve, O son of Pandu! You are destined to have the divine nature.
मूल श्लोकः
द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु।।16.6।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.6।। हे पार्थ ! इस लोक में दो प्रकार की भूतिसृष्टि है, दैवी और आसुरी। उनमें देवों का स्वभाव (दैवी सम्पदा) विस्तारपूर्वक कहा गया है; अब असुरों के स्वभाव को विस्तरश: मुझसे सुनो।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.6।।इस लोकमें दो तरहके प्राणियोंकी सृष्टि है — दैवी और आसुरी। दैवीका तो मैंने विस्तारसे वर्णन कर दिया, अब हे पार्थ ! तुम मेरेसे आसुरीका विस्तार सुनो।
English Translation By Swami Gambirananda
16.6 In this world there are are two (kinds of) creation of beings: the divine and the demoniacal. The divine has been spoken of elaborately. Hear about the demoniacal from Me, O son of Prtha.
मूल श्लोकः
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।।16.7।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.7।। आसुरी स्वभाव के लोग न प्रवृत्ति को; जानते हैं और न निवृत्ति को उनमें न शुद्धि होती है, न सदाचार और न सत्य ही होता है।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.7।।आसुरी प्रकृतिवाले मनुष्य प्रवृत्ति और निवृत्तिको नहीं जानते और उनमें न बाह्यशुद्धि, न श्रेष्ठ आचरण तथा न सत्य-पालन ही होता है।
English Translation By Swami Gambirananda
16.7 Neither do the demoniacal persons under-stand what is to be done and what is not to be done; nor does purity, or even good conduct or truthfulness exist in them.
मूल श्लोकः
असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्।।16.8।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.8।। वे कहते हैं कि यह जगत् आश्रयरहित, असत्य और ईश्वर रहित है, यह (स्त्रीपुरुष के) परस्पर कामुक संबंध से ही उत्पन्न हुआ है, और (इसका कारण) क्या हो सकता है?
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.8।।वे कहा करते हैं कि संसार असत्य, अप्रतिष्ठित और बिना ईश्वरके अपने-आप केवल स्त्री-पुरुषके संयोगसे पैदा हुआ है। इसलिये काम ही इसका कारण है, और कोई कारण नहीं है।
English Translation By Swami Gambirananda
16.8 They say that the world is unreal, it has no basis, it is without a God. It is born of mutual union brought about by passion! What other (cause can there be)?
मूल श्लोकः
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः।।16.9।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.9।। इस दृष्टि का अवलम्बन करके नष्टस्वभाव के अल्प बुद्धि वाले, घोर कर्म करने वाले लोग जगत् के शत्रु (अहित चाहने वाले) के रूप में उसका नाश करने के लिए उत्पन्न होते हैं।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.9।।उपर्युक्त (नास्तिक) दृष्टिका आश्रय लेनेवाले जो मनुष्य अपने नित्य स्वरूपको नहीं मानते, जिनकी बुद्धि तुच्छ है, जो उग्रकर्मा और संसारके शत्रु हैं, उन मनुष्योंकी सामर्थ्यका उपयोग जगत्का नाश करनेके लिये ही होता है।
English Translation By Swami Gambirananda
16.9 Holding on to this view, (these people) who are of depraved character, of poor intellect, given to fearful actions and harmful, wax strong for the ruin of the world.
मूल श्लोकः
काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।
मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।।16.10।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.10।। दम्भ, मान और मद से युक्त कभी न पूर्ण होने वाली कामनाओं का आश्रय लिये, मोहवश मिथ्या धारणाओं को ग्रहण करके ये अशुद्ध संकल्पों के लोग जगत् में कार्य करते हैं।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.10।।कभी पूरी न होनेवाली कामनाओंका आश्रय लेकर दम्भ, अभिमान और मदमें चूर रहनेवाले तथा अपवित्र व्रत धारण करनेवाले मनुष्य मोहके कारण दुराग्रहोंको धारण करके संसारमें विचरते रहते हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.10 Giving themselves up to insatiable passion, filled with vanity, pride and arrogance, adopting bad abjectives due to delusion, and having impure resolves, they engage in actions.
मूल श्लोकः
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्िचताः।।16.11।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.11।। मरणपर्यन्त रहने वाली अपरिमित चिन्ताओं से ग्रस्त और विषयोपभोग को ही परम लक्ष्य मानने वाले ये आसुरी लोग इस निश्चित मत के होते हैं कि “इतना ही (सत्य, आनन्द) है”।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.11।।वे मृत्युपर्यन्त रहनेवाली अपार चिन्ताओंका आश्रय लेनेवाले, पदार्थोंका संग्रह और उनका भोग करनेमें ही लगे रहनेवाले और ‘जो कुछ है, वह इतना ही है’ — ऐसा निश्चय करनेवाले होते हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.11 Beset with innumerable cares which end (only) with death, holding that the enjoyment of desirable objects is the highest goal, feeling sure that this is all.
मूल श्लोकः
आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।।16.12।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.12।। सैकड़ों आशापाशों से बन्धे हुये, काम और क्रोध के वश में ये लोग विषयभोगों की पूर्ति के लिये अन्यायपूर्वक धन का संग्रह करने के लिये चेष्टा करते हैं।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.12।।वे आशाकी सैकड़ों फाँसियोंसे बँधे हुए मनुष्य काम-क्रोधके परायण होकर पदार्थोंका भोग करनेके लिये अन्यायपूर्वक धन-संचय करनेकी चेष्टा करते रहते हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.12 Bound by hundreds of shackles in the form of hope, giving themselves wholly to passion and anger, they endeavour to amass wealth through foul means for the enjoyment of desirable objects.
मूल श्लोकः
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम्।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्।।16.13।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.13।। मैंने आज यह पाया है और इस मनोरथ को भी प्राप्त करूंगा, मेरे पास यह इतना धन है और इससे भी अधिक धन भविष्य में होगा।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.13।।इतनी वस्तुएँ तो हमने आज प्राप्त कर लीं और अब इस मनोरथको प्राप्त (पूरा) कर लेंगे।,इतना धन तो हमारे पास है ही, इतना धन फिर हो जायगा।
English Translation By Swami Gambirananda
16.13 ‘This has been gained by me today; I shall acire this desired object. This is in hand; again, this wealth also will come to me.’
मूल श्लोकः
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी।।16.14।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.14।। “यह शत्रु मेरे द्वारा मारा गया है और दूसरे शत्रुओं को भी मैं मारूंगा”, “मैं ईश्वर हूँ और भोगी हूँ”, “मैं सिद्ध पुरुष हूँ”, “मैं बलवान और सुखी हूँ”,।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.14।।वह शत्रु तो हमारे द्वारा मारा गया और उन दूसरे शत्रुओंको भी हम मार डालेंगे। हम सर्वसमर्थ हैं। हमारे पास भोग-सामग्री बहुत है। हम सिद्ध हैं। हम बड़े बलवान् और सुखी हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.14 ‘That enemy has been killed by me, and I shall kill others as well. I am the lord, I am the enjoyer, I am well-established, mighty and happy.’
मूल श्लोकः
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।।16.15।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.15।। “मैं धनवान् और श्रेष्ठकुल में जन्मा हूँ। मेरे समान दूसरा कौन है?”,’मैं यज्ञ करूंगा’, ‘मैं दान दूँगा’, ‘मैं मौज करूँगा’ – इस प्रकार के अज्ञान से वे मोहित होते हैं।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.15।।हम धनवान् हैं, बहुत-से मनुष्य हमारे पास हैं, हमारे समान और कौन है? हम खूब यज्ञ करेंगे, दान देंगे और मौज करेंगे — इस तरह वे अज्ञानसे मोहित रहते हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.15 ‘I am rich and high-born; who else is there similar to me? I shall perform sacrifices; I shall give, I shall rejoice,’-thus they are diversely deluded by non-discrimination.
मूल श्लोकः
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ।।16.16।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.16।। अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले, मोह जाल में फँसे तथा विषयभोगों में आसक्त ये लोग घोर, अपवित्र नरक में गिरते हैं।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.16।।कामनाओंके कारण तरह-तरहसे भ्रमित चित्तवाले, मोह-जालमें अच्छी तरहसे फँसे हुए तथा पदार्थों और भोगोंमें अत्यन्त आसक्त रहनेवाले मनुष्य भयङ्कर नरकोंमें गिरते हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.16 Bewildered by numerous thoughts, caught in the net of delusion, (and) engrossed in the enjoyment of desirable objects, they fall into a foul hell.
मूल श्लोकः
आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्।।16.17।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.17।। अपने आप को ही श्रेष्ठ मानने वाले, स्तब्ध (गर्वयुक्त), धन और मान के मद से युक्त लोग शास्त्रविधि से रहित केवल नाममात्र के यज्ञों द्वारा दम्भपूर्वक यजन करते हैं।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.17।।अपनेको सबसे अधिक पूज्य माननेवाले, अकड़ रखनेवाले तथा धन और मानके मदमें चूर रहनेवाले वे मनुष्य दम्भसे अविधिपूर्वक नाममात्रके यज्ञोंसे यजन करते हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.17 Self-conceited, haughty, filled with pride and intoxication of wealth, they perform sacrifices which are so in name only, with ostentation and regardless of the injunctions.
मूल श्लोकः
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।।16.18।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.18।। अहंकार, बल, दर्प, काम और क्रोध के वशीभूत हुए परनिन्दा करने वाले ये लोग अपने और दूसरों के शरीर में स्थित मुझ (परमात्मा) से द्वेष करने वाले होते हैं।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.18।।वे अहङ्कार, हठ, घमण्ड, कामना और क्रोधका आश्रय लेनेवाले मनुष्य अपने और दूसरोंके शरीरमें रहनेवाले मुझ अन्तर्यामीके साथ द्वेष करते हैं तथा (मेरे और दूसरोंके गुणोंमें) दोष-दृष्टि रखते हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.18 Resorting to egotism, power, arrogance, passion and anger, hating Me in their own and others’ bodies, (they become) [As the finite verb is missing in the verse, we have supplied ‘they become’. S. adds the verb prabhavanti, wax strong, from verse 9, and constructs the last portion thus: ‘৷৷.the envious ones wax strond.’ Following S. S., however, one may combine this verse with the preceding verse by taking ‘perform sacrifices’ as the finite verb.-Tr.’] envious by nature.
मूल श्लोकः
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्।
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।16.19।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.19।। ऐसे उन द्वेष करने वाले, क्रूरकर्मी और नराधमों को मैं संसार में बारम्बार (अजस्रम्) आसुरी योनियों में ही गिराता हूँ अर्थात् उत्पन्न करता हूँ।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.19।।उन द्वेष करनेवाले, क्रूर स्वभाववाले और संसारमें महान् नीच, अपवित्र मनुष्योंको मैं बार-बार आसुरी योनियोंमें गिराता ही रहता हूँ।
English Translation By Swami Gambirananda
16.19 I cast for ever those hateful, cruel, evil-doers in the worlds, the vilest of human beings, verily into the demoniacal classes.
मूल श्लोकः
असुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्।।16.20।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.20।। हे कौन्तेय ! वे मूढ़ पुरुष जन्मजन्मान्तर में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं और ( इस प्रकार) मुझे प्राप्त न होकर अधम गति को प्राप्त होते है।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.20।।हे कुन्तीनन्दन ! वे मूढ मनुष्य मेरेको प्राप्त न करके ही जन्म-जन्मान्तरमें आसुरी योनिको प्राप्त होते हैं, फिर उससे भी अधिक अधम गतिमें अर्थात् भयङ्कर नरकोंमें चले जाते हैं।
English Translation By Swami Gambirananda
16.20 Being born among the demoniacal species in births after births, the foods, without ever reaching Me, O son of Kunti, attain conditions lower than that.
मूल श्लोकः
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।16.21।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.21।। काम, क्रोध और लोभ ये आत्मनाश के त्रिविध द्वार हैं, इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.21।।काम, क्रोध और लोभ — ये तीन प्रकारके नरकके दरवाजे जीवात्माका पतन करनेवाले हैं, इसलिये इन तीनोंका त्याग कर देना चाहिये।
English Translation By Swami Gambirananda
16.21 This door of hell, which is the destroyer of the soul, is of three kinds-passion, anger and also greed. Therefore one should forsake these three.
मूल श्लोकः
एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्।।16.22।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.22।। हे कौन्तेय ! नरक के इन तीनों द्वारों से विमुक्त पुरुष अपने कल्याण के साधन का आचरण करता है और इस प्रकार परा गति को प्राप्त होता है।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.22।।हे कुन्तीनन्दन ! इन नरकके तीनों दरवाजोंसे रहित हुआ जो मनुष्य अपने कल्याणका आचरण करता है, वह परमगतिको प्राप्त हो जाता है।
English Translation By Swami Gambirananda
16.22 O son of Kunti, a person who is free from these three doors to darkness strives for the good of the soul. Thery he attains the highest Goal.
मूल श्लोकः
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।16.23।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.23।। जो पुरुष शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी कामना से प्रेरित होकर ही कार्य करता है, वह न पूर्णत्व की सिद्धि प्राप्त करता है, न सुख और न परा गति।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.23।। जो मनुष्य शास्त्रविधिको छोड़कर अपनी इच्छासे मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि-(अन्तःकरणकी शुद्धि-) को, न सुखको और न परमगतिको ही प्राप्त होता है।
English Translation By Swami Gambirananda
16.23 Ignoring the precept of the scriptures, he who acts under the impulsion of passion,-he does not attain perfection, nor happiness, nor the supreme Goal.
मूल श्लोकः
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।16.24।।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda
।।16.24।। इसलिए तुम्हारे लिए कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था (निर्णय) में शास्त्र ही प्रमाण है शास्त्रोक्त विधान को जानकर तुम्हें अपने कर्म करने चाहिए।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.24।।अतः तेरे लिये कर्तव्य-अकर्तव्यकी व्यवस्थामें शास्त्र ही प्रमाण है — ऐसा जानकर तू इस लोकमें शास्त्र-विधिसे नियत कर्तव्य कर्म करनेयोग्य है।
English Translation By Swami Gambirananda
16.24 Therefore, the scripture is your authority as regards the determination of what is to be done and what is not to be done. After understanding (your) duty as presented by scriptural injunction, you ought to perform (your duty) here.
।।16.1।।
–,
01) अभयम्
02) सत्त्वसंशुद्धिः
03) ज्ञानयोगव्यवस्थितिः
04)
02) दानं
03)दमश्च
04) यज्ञश्च
05) स्वाध्यायः
06) तपः
07 ) आर्जवम्
08)अहिंसा
09) सत्यम्
10) अक्रोधः
11) त्यागः
12) शान्तिः
13) अपैशुनं
14) दया
15) अलोलुप्त्वम्
16) मार्दवं
17) ह्रीः
18) अचापलम्
19) ,तेजः
20) क्षमा
21) धृतिः
22) शौचं
23) अद्रोहः
24) नातिमानिता
दम्भः दर्पः अतिमानः क्रोधश्च। पारुष्यमेव अज्ञानं
अभयम् अभीरुता।
सत्त्वसंशुद्धिः सत्त्वस्य अन्तःकरणस्य संशुद्धिः संव्यवहारेषु परवञ्चनामायानृतादिपरिवर्जनं शुद्धसत्त्वभावेन व्यवहारः इत्यर्थः।।
ज्ञानयोगव्यवस्थितिः ज्ञानं शास्त्रतः आचार्यतश्च आत्मादिपदार्थानाम् अवगमः? अवगतानाम् इन्द्रियाद्युपसंहारेण एकाग्रतया स्वात्मसंवेद्यतापादनं योगः? तयोः ज्ञानयोगयोः व्यवस्थितिः व्यवस्थानं तन्निष्ठता। एषा प्रधाना दैवी सात्त्विकी संपत्। यत्र येषाम् अधिकृतानां या प्रकृतिः संभवति? सात्त्विकी सा उच्यते।
दानं यथाशक्ति संविभागः अन्नादीनाम्। दमश्च बाह्यकरणानाम् उपशमः अन्तःकरणस्य उपशमं शान्तिं वक्ष्यति।
यज्ञश्च श्रौतः अग्निहोत्रादिः। स्मार्तश्च देवयज्ञादिः?
स्वाध्यायः ऋग्वेदाद्यध्ययनम् अदृष्टार्थम्। तपः वक्ष्यमाणं शारीरादि।
आर्जवम् ऋजुत्वं सर्वदा।।किं च –,
।।16.2।। –,
अहिंसा अहिंसनं प्राणिनां पीडावर्जनम्।
सत्यम् अप्रियानृतवर्जितं यथाभूतार्थवचनम्।
अक्रोधः परैः आक्रुष्टस्य अभिहतस्य वा प्राप्तस्य क्रोधस्य उपशमनम्।
त्यागः संन्यासः? पूर्वं दानस्य उक्तत्वात्।
शान्तिः अन्तःकरणस्य उपशमः।
अपैशुनं अपिशुनता परस्मै पररन्ध्रप्रकटीकरणं पैशुनम्? तदभावः अपैशुनम्।
दया कृपा भूतेषु दुःखितेषु।
अलोलुप्त्वम् इन्द्रियाणां विषयसंनिधौ अविक्रिया।
मार्दवं मृदुता अक्रौर्यम्।
ह्रीः लज्जा।
अचापलम् असति प्रयोजने वाक्पाणिपादादीनाम् अव्यापारयितृत्वम्।।किं च –,
।।16.3।। –,
तेजः प्रागल्भ्यं न त्वग्गता दीप्तिः।
क्षमा आक्रुष्टस्य ताडितस्य वा अन्तर्विक्रियानुत्पत्तिः? उत्पन्नायां विक्रियायाम् उपशमन् अक्रोधः इति अवोचाम। इत्थं क्षमायाः अक्रोधस्य च विशेषः।
धृतिः देहेन्द्रियेषु अवसादं प्राप्तेषु तस्य प्रतिषेधकः अन्तःकरणवृत्तिविशेषः? येन उत्तम्भितानि करणानि देहश्च न अवसीदन्ति।
शौचं द्विविधं मृज्जलकृतं बाह्यम् आभ्यन्तरं च मनोबुद्ध्योः नैर्मल्यं मायारागादिकालुष्याभावः एवं द्विविधं शौचम्। अद्रोहः परजिघांसाभावः अहिंसनम्।
नातिमानिता अत्यर्थं मानः अतिमानः? सः यस्य विद्यते सः अतिमानी? तद्भावः अतिमानिता? तदभावः नातिमानिता आत्मनः पूज्यतातिशयभावनाभाव इत्यर्थः।
भवन्ति अभयादीनि एतदन्तानि
संपदं अभिजातस्य। किं विशिष्टां संपदम्
दैवीं देवानां या संपत् ताम् अभिलक्ष्य जातस्य देवविभूत्यर्हस्य भाविकल्याणस्य इत्यर्थः? हे भारत।।अथ इदानीं आसुरी संपत् उच्यते –,
।।16.4।। —
,दम्भः धर्मध्वजित्वम्।
दर्पः विद्याधनस्वजनादिनिमित्तः उत्सेकः।
अतिमानः पूर्वोक्तः।
क्रोधश्च।
पारुष्यमेव च परुषवचनम् — यथा काणम् चक्षुष्मान् विरूपम् रूपवान् हीनाभिजनम् उत्तमाभिजनः इत्यादि।
अज्ञानं च अविवेकज्ञानं कर्तव्याकर्तव्यादिविषयमिथ्याप्रत्ययः।
अभिजातस्य पार्थ। किम् अभिजातस्येति? आह — संपदम् आसुरीम् असुराणां संपत् आसुरी ताम् अभिजातस्य इत्यर्थः।।अनयोः संपदोः कार्यम् उच्यते –,
Bhagavad Gita: Chapter 16: Verses 1-18 : Swami Ranganathananda
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Bhagavad Gita Chapter 16 (With Lyrics & Meaning) || Swami Sarvagananda Maharaj || Gita Path
Srimad Bhagavad Gita Dhyana Sloka
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Srimad Bhagavad Gita Chapter 1
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Srimad Bhagavad Gita Chapter 2
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Srimad Bhagvat Gita Chapter 3
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Srimad Bhagavad Gita Chapter 4
https://youtu.be/Dg-A2H_4nVM
Srimad Bhagavad Gita Chapter 5
https://youtu.be/ONb6gcJ2nO0
Srimad Bhagavad Gita Chapter 6
https://youtu.be/2K-qRnKZgtw
Srimad Bhagavad Gita Chapter 7 & 8
https://youtu.be/SDfCrvFl5OQ
Srimad Bhagavad Gita Chapter 9
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Srimad Bhagavad Gita Chapter 10
https://youtu.be/c7NReqZY3LM
Srimad Bhagavad Gita Chapter 11
https://youtu.be/AP5QIYsO4A8
Srimad Bhagavad Gita Chapter 12
https://youtu.be/yAyQrjKybnE
Srimad Bhagavad Gita Chapter 13
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Srimad Bhagavad Gita Chapter 14
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Srimad Bhagavad Gita Chapter 15
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Date 22 Nov 2021
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