Sri Ramakrishna

गृहस्थों के प्रति उपदेश

मणि – घर वालों के प्रति कर्त्तव्य कब तक रहता है ?

श्रीरामकृष्ण – उन्हें भोजन वस्त्र का दुख न हो। संतान जब स्वयं समर्थ होगी, तब भार-ग्रहण की आवश्यकता नहीं। चिड़ियों के बच्चे जब खुद चुगने लगते हैं , तब माँ के पास यदि खाने के लिए आते हैं तो माँ चोंच मारती है।

मणि – कर्म कब तक करना होगा ?
श्रीरामकृष्ण – फल होने पर फूल नहीं रह जाता। ईश्वरलाभ हो जाने से कर्म नहीं करना पड़ता, मन भी नहीं लगता।
“ज्यादा शराब पी लेने से मतवाला होश नहीं संभाल सकता – दुअन्नी बाहर पीने से कामकाज कर सकता है। इसवहार को और जीतना ही बटोगे उतना ही कर्म घटते रहेंगे। डरो मत। गृहस्थ की बहू के जब लड़का होनेवाला होता है तब उसकी सास धीरे-धीरे काम घटाती है। दसवें महीने में काम छूने भी नहीं देती। लड़का होने पर वह उसी के लिए रही है। “

” जो कुछ कर्म हैं , जहां वे समाप्त हो गए कि चिंता दूर हो गयी। गृहिणी घर का काम समाप्त करके जब कहीं बहार निकलती है, तब जल्दी नहीं लौटती, बुलाने पर भी नहीं आती। “

ईश्वर-दर्शन के उपाय

मास्टर – क्या ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं ?

श्रीरामकृष्ण – हाँ, हो सकते हैं। बीच-बीच में एकान्तवास, उनका नाम-गुण-गान और वस्तु-विचार करने से ईश्वर के दर्शन होते हैं।

मास्टर – कैसी अवस्था हो तो ईश्वर के दर्शन हो ?

श्रीरामकृष्ण – खूब व्याकुल होकर रोने से उनके दर्शन होते हैं। स्त्री या लड़के के लिए लोग आँसुओं की धरा भाते हैं, रूपये के लिए रोते हुए आँखें लाल कर लेते हैं, पर ईश्वर के लिए कोई कब रोता है ?
“व्याकुलता हुई की मानो आसमान पर सुबह की ललाई छा गई। शीघ्र ही सूर्य भगवान् निकलते हैं, व्याकुलता के बाद ही भगवद्दर्शन होते है।
“विषय पर विषयी की, पुत्र पर माता की और पति पर सती की – यह तीन प्रकार की चाह एकचित्र होकर जब ईश्वर की ओर मुड़ती है तभी ईश्वर मिलते हैं।
” बात यह है कि ईश्वर को प्यार करना चाहिए। विषय पर विषय पर विषयी की, पुत्र पर माता की और पति पर सती की जी प्रीति है उसे एकत्रित करने से जितनी प्रीति होती है, उतनी ही प्रीति से ईश्वर को बुलाने से उस प्रेमा का महा आकर्षण ईश्वर को खींच लेता है।
“व्याकुल होकर उन्हें पुकारना चाहिए। बिल्ली का बच्चा “मिऊँ-मिऊँ” करके मान को पुकारता भर है। उसकी माँ जहां उसे रखती, वहीँ वह रहता है। यदि उसे कष्ट होता है तो बस वह “मिऊँ-मिऊँ” करता है और कुछ नहीं जानता। माँ चाहे जहाँ रखे “मिऊँ-मिऊँ” सुनकर आ जाती है। “

भक्ति का उपाय

मास्टर (विनीत भाव से ) – ईश्वर में मन किस तरह लगे
श्रीरामकृष्ण – सर्वदा ईश्वर का नाम-गुण-गान करना चाहिए, सत्संग करना चाहिए।- बीच-बीच में भक्तों और साधुओं से मिलना चाहिए। संसार में दिन-रात विषय के भीतर पड़े रहने से मन ईश्वर में नहीं लगता। कभी-कभी निर्जन स्थान में इसवहार की चिंता करना बहुत जरूरी है। प्रथम अवस्था में बिना निर्जन के ईश्वर में मन लगाना कठिन है।
” पौधों को चारों ओर से रूँधना पड़ता है, नहीं तो बकरी चार लेगी
” ध्यान करना चाहिए मन में, कोने में और वन में। और सदा सत्-सत् विचार करना चाहिए। ईश्वर ही सत् अथवा नित्य हैं, और असत् अनित्य। इस प्रकार विचार करने से मन से अनियता वस्तुओं का त्याग हो जाता है। “

ईश्वर-दर्शन

The Goal of Life is Realization of God.

दिसम्बर 1881 : विवेकानंद रामकृष्‍ण परमहंस से मिले। नरेंद्र ने सीधा प्रश्न किया

नरेंद्र – ” ईश्वर को कभी देखा भी जा सकता है ? “

यह सुनकर श्री रामकृष्ण ने कहा , ‘हाँ, ईश्वर को देखा जा सकता है। मैं जैसे तुम्हे देख रहा हूँ, वैसे ही ईश्वर को भी देखा जा सकता है। ईश्वर से वार्त्तालाप भी किया जा सकता है। किन्तु उन्हें देखना भला कौन चाहता है ? लोग पत्नी-पुत्र, धन-दौलत के फेर में पड़े रहते हैं। किन्तु ईश्वर की ओर कौन ध्यान देता है ? ईश्वर की प्राप्ति तो रो-रोक्रर करनी होती है, तभी वो प्राप्त होते हैं। “

अन्य कुछ इसी तरह

उन्होंने वही सवाल किया जो वो औरों से कर चुके थे, ‘क्या आपने भगवान को देखा है?’ …….मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितना कि तुम्हें देख सकता हूं। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं।’

हां देखा है और मैं तुम्हें भी दिखा सकता हूं।

ईश्वर लाभ जीवन का उद्देश्य है। कौन पाना चाहता है , उन्हें देखना ही कौन चाहता है।

पहले संचय करो, फिर बांटना

स्रोत –

निष्काम कर्म तथा विद्या का संसार
श्री रामकृष्णवचनामृत ( प्रथम भाग ) श्री महेंद्रनाथ गुप्त ( श्री “म” ) अनुवादक – पण्डित सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला